Sunday, October 4, 2009

kuchshabdmereapne

कभी सम्मानित कभी अपमानित होती हूँ मैं
घर की लक्षमी बन मान पाती हूँ
छोटो के अपनत्व से भीगते हुए
बडो से आदर मान पाती हूँ मै
घर को सजाती-खुशिओं को बरसाती
पाती की बांहों में सिमट जाती हूँ मैं
बच्चो की किलकती हँसी मैं हूँ मै
सास-ससुर के आशीर्वादों मै हूँ मैं
पर अचानक एक दिन उस तीसरी
के जुड़ने पर सिलसिला शुरू हुआ ,
अपमानों का दिल का चैन बोझ बन गई,

सम्मानित-अपमानित होती रही

मखमली स्पर्श? कांटे लगने लगा ,

कुछ तो कमी थी जो दूसरी के पास गया

मेरा बेटा तो बस निभा रहा था किसी तरह

माँ मै ही कमी थी पापा तो बहुत अच्छे है............

टूटती- बिखरती -समेटती रही

चुप-चुप आंसू बहती रही, क्योकि
सम्मानित-अपमानित होती हूँ मै

फिर एक दिन बहार वाली ने दे दिया धोका

मन की नही,तन की नही पैसे की निकली पुजारिन

बेहोशी टूटी याद आई बीबी

पछतावा दो दिलो को फिर से जोड़ गया

सारे रिश्ते अचानक बदल गए

हमसफ़र के अपनाते ही

सम्मानित होने लगी हूँ

क्योकि..........................

सम्मनित -अपमानित होती हूँ मैं

.......................शालिनी अग्रवाल