Saturday, October 20, 2012

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Nawya - किंचित! अब प्रभात है Dr.Sweet Angel

भ्रूण -हत्या Dr.Sweet Angel कुछ शब्द मेरे अपने

नमस्ते भारतवर्ष ,


आज जो पोस्ट कर रही हूँ वह कविता तो नहीं है .............न ही आलेख ....................... न ही कोई कहानी 
ये तो बस आप-बीती  ............जग-बीती है ............कुछ शब्द मेरे अपने 

भ्रूण -हत्या1-भ्रूण -हत्या ,भ्रूण -हत्या ,भ्रूण हत्या जिसे देखो वही चिल्ला रहा है ,कहानी और कवितायेँ लिख रहा है,भाषण व् प्रवचन दे रहा है रोको -रोको भ्रूण-हत्या रोको हर ओर  बस इसी का शोर है ...............................तो क्या रूक गयी भ्रूण हत्या ?चिल्लाओ और चिल्लाओ बस बातें बनाओ ...................वही तो आती हैं हमें रचनाएँ लिखो भ्रूण-हत्या को पाप बताओ नारी जाती को महान  बता कर ,बेटियों की लम्बी प्रशंसा में  लम्बी चौड़ी  बातें कहो और सुनाओ या चिल्लाओ भ्रू-हत्या महापाप के नारे लगाओ बेटी ये होती है -बेटी वो होती है सुन-सुन कर  कान  पक  है अब सबके अब चुप करो सब,बंद करो सब  ............................................................पूछो उस औरत से जो औरत होने का रोना रोती  है सबसे पहले उसी को जानने की ललक होती है की कोख में  पलने वाला बच्चा लड़की है या लड़का ?पति के लाख समझाने पर भी भागती है कन्या भ्रूण-हत्या को पूछो उस सास  से जो  बहुएँ  तो बड़ी शान से लाती  है पर पोती की दादी कहलाने से शर्म से मर जाती है 'अरी  कुलछनी बेटे का मुह दिखाए बिना ही मार देगी मुझे 'कह कर हाय-हाय चिल्लाती है ....................इतिहास गवाह है ......................वर्तमान साक्षी है केवल औरत ही औरत की दुश्मन है ....................लक्ष्मी आई है .............सुनकर देवी ,चंडी का रूप धर लेती हैं हाँ-हाँ खुद तो बीटा  जन के बैठी हैं हमारी बेटी होने की ख़ुशी  मना  रही है।जब इस दुनिया की आधी   सत्ता (स्त्री )खुद ही अपने को समाप्त करना चाहती है तो आधी  सत्ता (पुरुष) बेचारा क्या करे ............बस नियति का नियम मान स्वीकार ले .............
डॉ  स्वीट एंजिल 


Wednesday, October 3, 2012

Dr.Sweet Angel

अनेकों बार

मन को सझातीं हूँ,

किंचित! अब प्रभात है ,

मेरे जीवन का ,

कितने मन-मयूर ,कोकिला

मेरे अंगना

नाचने को आशान्वित हैं !

रचुंगी दिवास्वप्न,

गढ़ूंगी आकृतियाँ,

फूलों-सुगंधों से

सलज्ज अल्पना

बनूँ बांसुरी

प्राण मन के मीत

लुक-छुप

चंदा-चांदनी का खेल,

प्रिय वक्ष प़र धर शीश

मूंदे नेत्र ,

खोयी रहूँ मोहक रूप में !

हौले से निहारते मेरे देव

मधु-यामिनी में

मेरा रूप-रस पीते