kuchshabdmereapne
Monday, January 4, 2016
Friday, October 2, 2015
dr. shalini agam
न कटाक्ष ,न व्यंग्य ,न औपचारिकता ,न सम्मोहन . बस एक अदद ,अटूट सत्य. आप बधाई की पात्रा हैं डॉ शालिनी अगम। …। ,तत्कालीन साहित्यिक जगत की पारदर्शिता का बखूबी आंकलन आपकी रचनाओं में
सुन्दरतम रचना सदैव की भाँति आदरणीया........
Dr.Shalini Agam
हम तो चिराग हैं उनके आशियाने के ,कभी ना कभी तो बुझ
जायेंगे ,आज शिकायत हैं उन्हें मेरे उजालों से ,कल उन्हें अंधेरे में बहुत
याद आयेंगे . . . .
hum to chirag hain unke ashiyane ke ,kabhi
na kabhi to bujh jayenge , aaj shikayat hai unhe mere ujalon
se ,kal andhere mein bahut yaad aayenge ..
जायेंगे ,आज शिकायत हैं उन्हें मेरे उजालों से ,कल उन्हें अंधेरे में बहुत
याद आयेंगे . . . .
hum to chirag hain unke ashiyane ke ,kabhi
na kabhi to bujh jayenge , aaj shikayat hai unhe mere ujalon
se ,kal andhere mein bahut yaad aayenge ..
Wednesday, September 18, 2013
Dr.Sweet Angel's An Awarded article
समुद्र और इंसान ...............बिलकुल एक जैसी प्रकृति के लगते हैं मुझे ...........
शांत ,स्थिर ,गहरे बहुत गहरे भीतर से
पर बाहर कोलाहल ,शोर ,टकराव कितना ..............क्या कभी किसी ने सोचा है कि अंदर से इतना खामोश रहने वाला अचानक कभी-कभी इतना अधीर क्यों हो जाता है ????/क्यों मचल कर लहरों के रूप में अपने मन की अशांति दर्शाता है .....बेकाबू हो कर मतवाला हो जाता है .....??जैसे कि भीतर ही खुद से संवाद करते -करते वो ऊब चूका है,थक चुका है ........अपने से साक्षात्कार कर -कर के उसका मन भर गया है ......अब बाहर आकर सबसे मिलना चाहता है .....सबको खुद में समेट लेना चाहता है .......कोलाहल अच्छा लगता है कभी -कभी
वो सागर विशाल लहरों का स्वामी ,अधिपति .......
हर आवेग को स्वम् के भीतर समां लेने की चेष्टा ,उद्विग्नता ,
बाहर बस हलचल ही हलचल ,उठा पटक कभी गरजता कभी दहाड़ता सा ,
कभी प्रचंड ,कभी मतवाला सा ..........पर भीतर से न जाने कितने राज छुपाता सा ,सबका पोषक ,सबका रखवाला ,अनमोल रत्नों से भरा-भरा ......धरती की कलाई में जैसे नील मणि सा जड़ा -जड़ा .......न जाने क्या -क्या नहीं समाया इसमें .............बहुत विस्मय कारी ,रोमांच कारी .....पर बाहर से बिलकुल विपरीत एकदम शैतान बालक के जैसा उछलता है ,कूदता है ........ हर चीज को पाने की ललक ,खुद में समाने की चेष्टा ,...................... .बरसों ,मीलों तक फैला हुआ विशाल समुद्र ................पर भीतर से ........न जाने कितने युगों का धीरज ...रहस्यों से भरा ........अनुभवी ....कीमती धरोहर संभाले एक वरिष्ठ वृद्ध सा ..........खामोश ,स्थिर,बस खुद से संवाद करता सा ..............परिपक्व ......संवेदनशील ........एकाकी .........स्वम् को छुपाने का प्रयास करता सा ....पर ऊपर से एकदम विपरीत ...........उथला ,शोर व् कोलाहल से भरा हुआ ...........सामाजिकता निभाता सा ...........आते -जाते हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींचता हुआ ...............क्या हम इंसान भी वैसे ही नहीं हैं .................अन्दर कुछ और ................बाहर कुछ और ..................बिलकुल सागर के समान .............................. ...खुद से ही डर कर औरों का सहारा लेते हैं ...........अपनी विशालता को भूल कर एकाकी -पन से घबरा कर ....ढूंढते हैं सहारा ...........बेसहारों से कभी -कभी ........
डॉ स्वीट एंजिल
Dr.Sweet Angel on 'Aagaman's cover page ........
सच्चाई जीवन की ;
मोती की माला टूटने परर हम झुक-झुक कर उसे समेटते है,बार-बार गिनते है की कोई मोती कम तो नहीं, पर अपने किसी का ह्रदय कितनी बार टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर गया, इसकी किसी को परवाह नहीं. दूसरे के आंसू पोंछने को तत्पर कभी कोई नहीं सोचता की मेरे घर में मुझे सबसे अधिक प्यार करने वाला/वाली की आँखों में मेरे कारण नमी तो नहीं? क्या मेरे अपने के स्वतंत्र जीवन का मई हर पल बंधक तो नहीं?????????????????
मोती की माला टूटने परर हम झुक-झुक कर उसे समेटते है,बार-बार गिनते है की कोई मोती कम तो नहीं, पर अपने किसी का ह्रदय कितनी बार टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर गया, इसकी किसी को परवाह नहीं. दूसरे के आंसू पोंछने को तत्पर कभी कोई नहीं सोचता की मेरे घर में मुझे सबसे अधिक प्यार करने वाला/वाली की आँखों में मेरे कारण नमी तो नहीं? क्या मेरे अपने के स्वतंत्र जीवन का मई हर पल बंधक तो नहीं?????????????????
Thursday, June 13, 2013
BEING HUMAN........................DR SWEET ANGEL
समुद्र और इंसान विशेषकर ( पुरुष )...............बिलकुल एक जैसी प्रकृति के लगते हैं मुझे ...........
शांत ,स्थिर ,गहरे बहुत गहरे भीतर से
पर बाहर कोलाहल ,शोर ,टकराव कितना ..............क्या कभी किसी ने सोचा है कि अंदर से इतना खामोश रहने वाला अचानक कभी-कभी इतना अधीर क्यों हो जाता है ????/क्यों मचल कर लहरों के रूप में अपने मन की अशांति दर्शाता है .....बेकाबू हो कर मतवाला हो जाता है .....??जैसे कि भीतर ही खुद से संवाद करते -करते वो ऊब चूका है,थक चुका है ........अपने से साक्षात्कार कर -कर के उसका मन भर गया है ......अब बाहर आकर सबसे मिलना चाहता है .....सबको खुद में समेट लेना चाहता है .......कोलाहल अच्छा लगता है कभी -कभी
वो सागर विशाल लहरों का स्वामी ,अधिपति .......
हर आवेग को स्वम् के भीतर समां लेने की चेष्टा ,उद्विग्नता ,
बाहर बस हलचल ही हलचल ,उठा पटक कभी गरजता कभी दहाड़ता सा ,
कभी प्रचंड ,कभी मतवाला सा ..........पर भीतर से न जाने कितने राज छुपाता सा ,सबका पोषक ,सबका रखवाला ,अनमोल रत्नों से भरा-भरा ......धरती की कलाई में जैसे नील मणि सा जड़ा -जड़ा .......न जाने क्या -क्या नहीं समाया इसमें .............बहुत विस्मय कारी ,रोमांच कारी .....पर बाहर से बिलकुल विपरीत एकदम शैतान बालक के जैसा उछलता है ,कूदता है ........ हर चीज को पाने की ललक ,खुद में समाने की चेष्टा ,...................... .बरसों ,मीलों तक फैला हुआ विशाल समुद्र ................पर भीतर से ........न जाने कितने युगों का धीरज ...रहस्यों से भरा ........अनुभवी ....कीमती धरोहर संभाले एक वरिष्ठ वृद्ध सा ..........खामोश ,स्थिर,बस खुद से संवाद करता सा ..............परिपक्व ......संवेदनशील ........एकाकी .........स्वम् को छुपाने का प्रयास करता सा ....पर ऊपर से एकदम विपरीत ...........उथला ,शोर व् कोलाहल से भरा हुआ ...........सामाजिकता निभाता सा ...........आते -जाते हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींचता हुआ ...............क्या हम इंसान भी वैसे ही नहीं हैं .................अन्दर कुछ और ................बाहर कुछ और ..................बिलकुल सागर के समान .............................. ...खुद से ही डर कर औरों का सहारा लेते हैं ...........अपनी विशालता को भूल कर एकाकी -पन से घबरा कर ....ढूंढते हैं सहारा ...........बेसहारों से कभी -कभी ........
डॉ स्वीट एंजिल
Friday, May 24, 2013
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