Wednesday, October 3, 2012

Dr.Sweet Angel

अनेकों बार

मन को सझातीं हूँ,

किंचित! अब प्रभात है ,

मेरे जीवन का ,

कितने मन-मयूर ,कोकिला

मेरे अंगना

नाचने को आशान्वित हैं !

रचुंगी दिवास्वप्न,

गढ़ूंगी आकृतियाँ,

फूलों-सुगंधों से

सलज्ज अल्पना

बनूँ बांसुरी

प्राण मन के मीत

लुक-छुप

चंदा-चांदनी का खेल,

प्रिय वक्ष प़र धर शीश

मूंदे नेत्र ,

खोयी रहूँ मोहक रूप में !

हौले से निहारते मेरे देव

मधु-यामिनी में

मेरा रूप-रस पीते



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