अनेकों बार
मन को सझातीं हूँ,
किंचित! अब प्रभात है ,
मेरे जीवन का ,
कितने मन-मयूर ,कोकिला
मेरे अंगना
नाचने को आशान्वित हैं !
रचुंगी दिवास्वप्न,
गढ़ूंगी आकृतियाँ,
फूलों-सुगंधों से
सलज्ज अल्पना
बनूँ बांसुरी
प्राण मन के मीत
लुक-छुप
चंदा-चांदनी का खेल,
प्रिय वक्ष प़र धर शीश
मूंदे नेत्र ,
खोयी रहूँ मोहक रूप में !
हौले से निहारते मेरे देव
मधु-यामिनी में
मेरा रूप-रस पीते
मन को सझातीं हूँ,
किंचित! अब प्रभात है ,
मेरे जीवन का ,
कितने मन-मयूर ,कोकिला
मेरे अंगना
नाचने को आशान्वित हैं !
रचुंगी दिवास्वप्न,
गढ़ूंगी आकृतियाँ,
फूलों-सुगंधों से
सलज्ज अल्पना
बनूँ बांसुरी
प्राण मन के मीत
लुक-छुप
चंदा-चांदनी का खेल,
प्रिय वक्ष प़र धर शीश
मूंदे नेत्र ,
खोयी रहूँ मोहक रूप में !
हौले से निहारते मेरे देव
मधु-यामिनी में
मेरा रूप-रस पीते
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