समुद्र और इंसान ...............बिलकुल एक जैसी प्रकृति के लगते हैं मुझे ...........
शांत ,स्थिर ,गहरे बहुत गहरे भीतर से
पर बाहर कोलाहल ,शोर ,टकराव कितना ..............क्या कभी किसी ने सोचा है कि अंदर से इतना खामोश रहने वाला अचानक कभी-कभी इतना अधीर क्यों हो जाता है ????/क्यों मचल कर लहरों के रूप में अपने मन की अशांति दर्शाता है .....बेकाबू हो कर मतवाला हो जाता है .....??जैसे कि भीतर ही खुद से संवाद करते -करते वो ऊब चूका है,थक चुका है ........अपने से साक्षात्कार कर -कर के उसका मन भर गया है ......अब बाहर आकर सबसे मिलना चाहता है .....सबको खुद में समेट लेना चाहता है .......कोलाहल अच्छा लगता है कभी -कभी
वो सागर विशाल लहरों का स्वामी ,अधिपति .......
हर आवेग को स्वम् के भीतर समां लेने की चेष्टा ,उद्विग्नता ,
बाहर बस हलचल ही हलचल ,उठा पटक कभी गरजता कभी दहाड़ता सा ,
कभी प्रचंड ,कभी मतवाला सा ..........पर भीतर से न जाने कितने राज छुपाता सा ,सबका पोषक ,सबका रखवाला ,अनमोल रत्नों से भरा-भरा ......धरती की कलाई में जैसे नील मणि सा जड़ा -जड़ा .......न जाने क्या -क्या नहीं समाया इसमें .............बहुत विस्मय कारी ,रोमांच कारी .....पर बाहर से बिलकुल विपरीत एकदम शैतान बालक के जैसा उछलता है ,कूदता है ........ हर चीज को पाने की ललक ,खुद में समाने की चेष्टा ,...................... .बरसों ,मीलों तक फैला हुआ विशाल समुद्र ................पर भीतर से ........न जाने कितने युगों का धीरज ...रहस्यों से भरा ........अनुभवी ....कीमती धरोहर संभाले एक वरिष्ठ वृद्ध सा ..........खामोश ,स्थिर,बस खुद से संवाद करता सा ..............परिपक्व ......संवेदनशील ........एकाकी .........स्वम् को छुपाने का प्रयास करता सा ....पर ऊपर से एकदम विपरीत ...........उथला ,शोर व् कोलाहल से भरा हुआ ...........सामाजिकता निभाता सा ...........आते -जाते हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींचता हुआ ...............क्या हम इंसान भी वैसे ही नहीं हैं .................अन्दर कुछ और ................बाहर कुछ और ..................बिलकुल सागर के समान .............................. ...खुद से ही डर कर औरों का सहारा लेते हैं ...........अपनी विशालता को भूल कर एकाकी -पन से घबरा कर ....ढूंढते हैं सहारा ...........बेसहारों से कभी -कभी ........
डॉ स्वीट एंजिल
10 comments:
जीवन की सच्ची अनुभूति----
बहुत सुंदर
aapka aashirwad pakar dhany hui Jyoti sir ji ...
.जी विरह वेदना भाव से ओतप्रोत आपकी पीड़ा झलकाती अभिव्यक्ति ..... ह्रदय स्पर्शी रचना ....मार्मिक रचना ...
thnx n welcome for ur comment preetpal ji...
congrats dr sweet
शब्द चुराकर लाएं कहाँ से
पेड़ों पर नही लगते शब्द ।
इतनी सुन्दर छवी देखकर
कौन नहीं होगा स्तब्ध ॥
व्हाट्सऐप पर कोई अप्सरा
जिस दिन स्वर्ग से आएगी
देख शालिनी रूप तुम्हारा
जल भुनकर मर जायेगी ॥
अपनी रति को कामदेव भी
फिर तलाक दे सकता है ।
तुम्हें देखने के खातिर वह
वाई फाई ले सकता है ॥
वाह!! अप्रतिम... अति सुन्दर, उपमा तो अनुपमेय है । हार्दिक बधाई....
Thanks 😊
अति सुन्दर ।
Kamlesh Kumar Verma uncle ji thanks for you beautiful words on my facebook post .............."सुन्दरतम बेटी--------सागर को सुख देने वाली लहराती संग संग लहरें---मोती जो सीप के अंदर राह तके दिन कब बहुरें---पर उसको मालूम नहीं है जो भी है वो मोती है----बाहर निकले भाव बढ़ेगे जाने कितने भाव भरे .-----स्नेहाशीष".
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