Saturday, March 16, 2013

कुछ शब्द मेरे अपने TIP OF THE DAY


GOOD MORNING INDIA
यह बहुत ध्यान देने वाली और आश्चर्य जनक बात है कि हमारी 50% बिमारियों के कारण पूर्णतया मनोवैज्ञानिक होते हैं । रोगों कि जड़े तो हमारे मनोवेगों में होती हैं.कैसे आइये जानें ................
मेडिकल साइंस में शायद इस बात का ज़िक्र नहीं है कि हम अपने विचारों और दिमाग को अलग नहीं कर सकतें .लेकिन इस सच्चाई को जुठ्लाया भी नहीं जा सकता कि हमारें आचर-विचार और मान्यताएं शारीरिक तल प़र भी हमें प्रभवित करतीं हैं-नई खोज तो यंहा तक बतातीं हैं कि जींस भी हमारे विचारों से बदलने कि क्षमता रखतें हैं .अगर हम गौर करें तो पायेंगें कि संकल्प की शक्ति ही हमें अनेक बिमारियों से दूर ले जा सकती है। कहा भी गया है" मन के हारे हार है -मन के जीते जीत"......
जब हम हँसतें हैं ,और प्रसन्न रहतें हैं तब शरीर का हर अंग हमारे साथ हँसता है और जीवन-वृद्धि का सन्देश हमारी कोशिकाओं तक पहुँचता है.जब हमारी सोच-समझ सकारात्मकता के जल से भीगने लगती है तब हम प्रसन्न रहने लगतें हैं .वैज्ञानिक सिद्ध कर चुकें है कि एक प्रसन्न-चित्त व्यक्ति में 'neuropeptide hormone'अलग तरह से कार्य करता जिसके परिणाम -स्वरुप हमे मिलता है -स्फूर्ति से भरे अंग-प्रत्यंग,चमकती स्वस्थ त्वचा ,स्वस्थ व् रोग रहित जीवन...........इसके ठीक विपरीत जो व्यक्ति अधिकतर क्रोधित और उदास रहता है उनका शरीर समय से पहले बूढ़ा और बीमारियों का घर बन जाता है।
बोध और चेतना अंतत: कोशिकाओं कि झिल्ली प़र स्तिथ होती है .औषधिशास्त्र -दवा आदमी की ऊपर की बीमारीओं को पकडती हैं -प़र हर हाल में खुश रहकर ,सकारात्मक सोच का शास्त्र आदमी को भीतर से पकड़ता है।
मानसिक उदासी ,खीज चिढन ,निराशा,क्रोध और अपने आप से प्यार न होना ये मानसिक बीमारियाँ पैदा होतीं हैं भीतर और फैलतीं है बाहर की तरफ ।
डॉ.शालिनीअगम
2010

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