Wednesday, September 18, 2013

Dr.Sweet Angel's An Awarded article

समुद्र और इंसान ...............बिलकुल एक जैसी प्रकृति के लगते हैं मुझे ...........
शांत ,स्थिर ,गहरे बहुत गहरे भीतर  से 
पर बाहर कोलाहल ,शोर ,टकराव कितना ..............क्या कभी किसी ने सोचा है कि अंदर से इतना खामोश रहने वाला अचानक कभी-कभी इतना अधीर क्यों हो जाता है ????/क्यों मचल कर लहरों के रूप में अपने मन की अशांति दर्शाता है .....बेकाबू हो कर मतवाला हो जाता है .....??जैसे कि भीतर ही खुद से संवाद करते -करते वो ऊब चूका है,थक चुका  है ........अपने से साक्षात्कार कर -कर के उसका मन भर गया है ......अब बाहर  आकर सबसे मिलना चाहता है .....सबको खुद में समेट लेना चाहता है .......कोलाहल अच्छा लगता है कभी -कभी 
 वो सागर  विशाल लहरों का   स्वामी ,अधिपति .......
हर आवेग को स्वम् के भीतर समां लेने की चेष्टा ,उद्विग्नता ,
बाहर  बस हलचल ही हलचल ,उठा पटक कभी गरजता कभी दहाड़ता सा ,
कभी प्रचंड ,कभी मतवाला सा ..........पर भीतर से न जाने कितने राज छुपाता सा ,सबका पोषक ,सबका रखवाला ,अनमोल रत्नों  से भरा-भरा ......धरती की कलाई में  जैसे नील मणि सा जड़ा -जड़ा .......न जाने क्या -क्या नहीं समाया इसमें .............बहुत विस्मय कारी ,रोमांच कारी .....पर बाहर  से बिलकुल विपरीत एकदम शैतान बालक के जैसा उछलता है ,कूदता है ........ हर चीज को पाने की ललक ,खुद में समाने  की चेष्टा ,.......................बरसों ,मीलों तक फैला हुआ विशाल  समुद्र ................पर भीतर से ........न जाने कितने युगों का धीरज ...रहस्यों  से भरा ........अनुभवी ....कीमती धरोहर संभाले एक वरिष्ठ वृद्ध सा ..........खामोश ,स्थिर,बस खुद से संवाद करता सा ..............परिपक्व ......संवेदनशील ........एकाकी .........स्वम् को छुपाने का प्रयास करता सा ....पर ऊपर से एकदम विपरीत ...........उथला ,शोर व् कोलाहल से भरा हुआ ...........सामाजिकता निभाता सा ...........आते -जाते हर किसी का ध्यान अपनी ओर  खींचता हुआ ...............क्या हम इंसान भी वैसे ही नहीं हैं .................अन्दर कुछ और ................बाहर  कुछ और ..................बिलकुल सागर के समान .................................खुद से ही डर  कर औरों का सहारा लेते हैं  ...........अपनी विशालता को भूल कर एकाकी -पन  से घबरा कर ....ढूंढते हैं सहारा ...........बेसहारों से  कभी -कभी ........
डॉ स्वीट एंजिल 

Dr.Sweet Angel on 'Aagaman's cover page ........

सच्चाई जीवन की ;
मोती की माला टूटने परर हम झुक-झुक कर उसे समेटते है,बार-बार गिनते है की कोई मोती कम तो नहीं, पर अपने किसी का ह्रदय कितनी बार टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर गया, इसकी किसी को परवाह नहीं. दूसरे के आंसू पोंछने को तत्पर कभी कोई नहीं सोचता की मेरे घर में मुझे सबसे अधिक प्यार करने वाला/वाली की आँखों में मेरे कारण नमी तो नहीं? क्या मेरे अपने के स्वतंत्र जीवन का मई हर पल बंधक तो नहीं?????????????????

Thursday, June 13, 2013

BEING HUMAN........................DR SWEET ANGEL

समुद्र और इंसान विशेषकर  ( पुरुष )...............बिलकुल एक जैसी प्रकृति के लगते हैं मुझे ...........
शांत ,स्थिर ,गहरे बहुत गहरे भीतर  से 
पर बाहर कोलाहल ,शोर ,टकराव कितना ..............क्या कभी किसी ने सोचा है कि अंदर से इतना खामोश रहने वाला अचानक कभी-कभी इतना अधीर क्यों हो जाता है ????/क्यों मचल कर लहरों के रूप में अपने मन की अशांति दर्शाता है .....बेकाबू हो कर मतवाला हो जाता है .....??जैसे कि भीतर ही खुद से संवाद करते -करते वो ऊब चूका है,थक चुका  है ........अपने से साक्षात्कार कर -कर के उसका मन भर गया है ......अब बाहर  आकर सबसे मिलना चाहता है .....सबको खुद में समेट लेना चाहता है .......कोलाहल अच्छा लगता है कभी -कभी 
 वो सागर  विशाल लहरों का   स्वामी ,अधिपति .......
हर आवेग को स्वम् के भीतर समां लेने की चेष्टा ,उद्विग्नता ,
बाहर  बस हलचल ही हलचल ,उठा पटक कभी गरजता कभी दहाड़ता सा ,
कभी प्रचंड ,कभी मतवाला सा ..........पर भीतर से न जाने कितने राज छुपाता सा ,सबका पोषक ,सबका रखवाला ,अनमोल रत्नों  से भरा-भरा ......धरती की कलाई में  जैसे नील मणि सा जड़ा -जड़ा .......न जाने क्या -क्या नहीं समाया इसमें .............बहुत विस्मय कारी ,रोमांच कारी .....पर बाहर  से बिलकुल विपरीत एकदम शैतान बालक के जैसा उछलता है ,कूदता है ........ हर चीज को पाने की ललक ,खुद में समाने  की चेष्टा ,.......................बरसों ,मीलों तक फैला हुआ विशाल  समुद्र ................पर भीतर से ........न जाने कितने युगों का धीरज ...रहस्यों  से भरा ........अनुभवी ....कीमती धरोहर संभाले एक वरिष्ठ वृद्ध सा ..........खामोश ,स्थिर,बस खुद से संवाद करता सा ..............परिपक्व ......संवेदनशील ........एकाकी .........स्वम् को छुपाने का प्रयास करता सा ....पर ऊपर से एकदम विपरीत ...........उथला ,शोर व् कोलाहल से भरा हुआ ...........सामाजिकता निभाता सा ...........आते -जाते हर किसी का ध्यान अपनी ओर  खींचता हुआ ...............क्या हम इंसान भी वैसे ही नहीं हैं .................अन्दर कुछ और ................बाहर  कुछ और ..................बिलकुल सागर के समान .................................खुद से ही डर  कर औरों का सहारा लेते हैं  ...........अपनी विशालता को भूल कर एकाकी -पन  से घबरा कर ....ढूंढते हैं सहारा ...........बेसहारों से  कभी -कभी ........
डॉ स्वीट एंजिल 

Tuesday, April 23, 2013

may God bless you papa...............

क्यों  अकेले चले गए पापा ....??????
क्या आपको मेरा खयाल न आया  
एक जैसी बेबसी ,लाचारी , अपमान , पराधीनता 
मजबूरियां हम दोनों की .......पर अलग-अलग परिवेश में 
कितने कमजोर निकले पापा ............इतनी जल्दी हार गए 
मुझे भी साथ ले जाते ................
एक ही माँ के जुड़वे  बच्चे होते हम 
आप भाई-मैं बहिन के रूप में  पापा 
फिर से खेलते साथ-साथ कैरम ,बैडमिंटन ,
ताश के पत्ते ,साइकलिंग और कहानियां ....
मुझे पढ़ाते ,हंसाते मेरा ध्यान  रखते पापा 
अभी भी देर नहीं हुई .............
जल्दी से बुला लो ..............
मुझे बड़े भाई के रूप में ही पापा 
क्योंकि बड़ा भाई भी पिता से कम नहीं होता पापा .......

Saturday, March 16, 2013

कुछ शब्द मेरे अपने TIP OF THE DAY



ए चाँद ए सितारों बतादो मुझे



कौन हूँ मैं ,क्या हूँ मैं,?


क्यों सांसे लिए जा रही हूँ


.............यूँ तनहा .....?


तभी एक सितारा मुस्काया और



शरारत से बोला ,जरा ध्यान तो दे .....


मैं हूँ तेरा हमसाया .......


जब भी तू कहती है कि मैं तनहा हूँ

वो कहीं से कहता है कि मैं हूँ न !


और उसका अक्स उभर आता है मुझमे
 —

कुछ शब्द मेरे अपने TIP OF THE DAY


GOOD MORNING INDIA
यह बहुत ध्यान देने वाली और आश्चर्य जनक बात है कि हमारी 50% बिमारियों के कारण पूर्णतया मनोवैज्ञानिक होते हैं । रोगों कि जड़े तो हमारे मनोवेगों में होती हैं.कैसे आइये जानें ................
मेडिकल साइंस में शायद इस बात का ज़िक्र नहीं है कि हम अपने विचारों और दिमाग को अलग नहीं कर सकतें .लेकिन इस सच्चाई को जुठ्लाया भी नहीं जा सकता कि हमारें आचर-विचार और मान्यताएं शारीरिक तल प़र भी हमें प्रभवित करतीं हैं-नई खोज तो यंहा तक बतातीं हैं कि जींस भी हमारे विचारों से बदलने कि क्षमता रखतें हैं .अगर हम गौर करें तो पायेंगें कि संकल्प की शक्ति ही हमें अनेक बिमारियों से दूर ले जा सकती है। कहा भी गया है" मन के हारे हार है -मन के जीते जीत"......
जब हम हँसतें हैं ,और प्रसन्न रहतें हैं तब शरीर का हर अंग हमारे साथ हँसता है और जीवन-वृद्धि का सन्देश हमारी कोशिकाओं तक पहुँचता है.जब हमारी सोच-समझ सकारात्मकता के जल से भीगने लगती है तब हम प्रसन्न रहने लगतें हैं .वैज्ञानिक सिद्ध कर चुकें है कि एक प्रसन्न-चित्त व्यक्ति में 'neuropeptide hormone'अलग तरह से कार्य करता जिसके परिणाम -स्वरुप हमे मिलता है -स्फूर्ति से भरे अंग-प्रत्यंग,चमकती स्वस्थ त्वचा ,स्वस्थ व् रोग रहित जीवन...........इसके ठीक विपरीत जो व्यक्ति अधिकतर क्रोधित और उदास रहता है उनका शरीर समय से पहले बूढ़ा और बीमारियों का घर बन जाता है।
बोध और चेतना अंतत: कोशिकाओं कि झिल्ली प़र स्तिथ होती है .औषधिशास्त्र -दवा आदमी की ऊपर की बीमारीओं को पकडती हैं -प़र हर हाल में खुश रहकर ,सकारात्मक सोच का शास्त्र आदमी को भीतर से पकड़ता है।
मानसिक उदासी ,खीज चिढन ,निराशा,क्रोध और अपने आप से प्यार न होना ये मानसिक बीमारियाँ पैदा होतीं हैं भीतर और फैलतीं है बाहर की तरफ ।
डॉ.शालिनीअगम
2010

i am the best



Tuesday, March 5, 2013

Dr.Shalini Agam


पर हृदय में एकांत कितना

अभी तक जी रही थी
सिर्फ एक एकांत
घर में बहुत भीड़ है
पर मन में है एकांत
इस एकांत को तोड़ने
अभी तक न कोई आया था
खलबली तो मचा गए सभी
अपने .........???????
कभी तानो की
कभी अपमान की
कभी तिरस्कार की
कभी प्रताड़ना की
कभी मेरे कर्तव्यों की
ये करो, ये न करो
ऐसे करो ,वैसे करो
मुह मत खोलो
किसी से मत बोलो
अधिकारों की बात ही मत करो
बस कर्तव्य ही निभाते जाओ
चारों ओर शोर इतना
पर हृदय में एकांत कितना
................................
पर ऐसे में आपका आना
आप में देखा
एक सरल भाव
एक अपनापन
आपने बताया तो जाना
हाय ......................
मैं भी एक इन्सान हूँ
इच्छाएं मेरी भी हैं ....
हाँ ...........
ये सलोनी खिलखिलाहट
ये आशा-उमंग मेरे मन में भी हैं
रे पागल मन
तू भी गाता है….

पैर तेरे भी हैं
जो थिरकना चाहते हैं
तन तेरा भी चाहता है झूमना
शायद किसी के आलिंगन में
या शायद किसी के मद भरे गीतों में ....
बिखरे हुए मोतियों की
माला को गूंथने का एक साहस
एक हौंसला ,एक सहारा
एक एहसास ,एक साथी
एक सरल व्यक्तित्व
आश्चर्य-जनक ,प्रतिभाशाली
स्वंत्र-विचारों का सहायक
कोई अपनों से अधिक अपना ........
............पर पराया ...


 —

Dr.Shalini Agam


आजकल हम सभी पूरी तरह पाश्चात्य संस्कृति के रंग मे रँगे हुए हैं .........और ऊपर से ये इन्टरनेट की लुभावनी दुनिय………। जो हमारे सपनों को नयी उड़न देती है ......जहाँ विवाहित होते हुए भी एक से अधिक विवाह या प्रेमी -साथी होना कोई बड़ी बात नहीं
टकराहट होती है भारतीय संस्कृति की पश्चिम की संस्कृति से ..........जहाँ पर पुरुष दोगली मानसिकता को लेकर जी रहें हैं ...समस्या तब उठ खड़ी होती है जब वो स्वम् तो एक से अधिक अफेयर करना ठीक समझता पर पर पत्नी को केवल सती -सावित्री के रूप में देखना चाहता है ...............और सबसे बड़ी मुश्किल तब पैदा होती है जब पत्नी अपने पति को प्राण-पण से चाहती है ..........और किसी दूसरी के साथ उसे बाँट नहीं पाती .....तिल -तिल कर घुटती है .पति,बच्चे,सास-ससुर ,घर,बाहर ,रिश्तेदार,यहाँ तक कि पति का प्यारा कुत्ता तक संभालती है ........पूरी निष्ठां व् ईमानदारी के साथ सिर्फ दो रोटियों के लिये……….????????
कभी-कभी निराश होकर ..या धोखा खायी किसी क्रोधित काली -समान वो बदले की आग में तो जलती ही है चाहती है कि खुद भी भ्रष्ट हो जाये और पति के बनाये रास्ते पर चल निकले ..............और कभी-कभार एसा हो भी जाता है .शायद एक प्रतिशत स्त्रियाँ टूट भी जाती हैं .............पर उसका क्या जिसे अपने पति के अलावा कोई भाता ही नही है ……………… वो पति को न केवल परमेश्वेर मानती है अपितु उसके बिना जीने की एक पल के लिए भी कल्पना नहीं कर पाती .......पति को देख कर ही जिसकी साँस में साँस आती है .........................ये प्यार भी कितना प्यारा होता है न…...मालूम है की धोखा और अपमान के सिवा अब कुछ नहीं मिलना ......फिर भी ………. हर बस उसकी की चाह ...........उसी का धयान,..कभी गलती से छू भर भी ले तो मन -मयूर नाचने लगता है………. ये जानते हुए भी कि अब तू उनकी ज़िन्दगी में कहीं नहीं ...............कभी भी नहीं ………………
हाथों का स्पर्श हटा लेने से
मन का विश्वास कम नहीं हो जाता
अपनों के दृष्टि घुमा लेने से भी
रिश्तों का भान कम नहीं हो जाता
रवि के बादलों में छिप जाने से
दिन का उजाला मिट नहीं जाता
पूर्णमासी का चाँद निकलने पर भी
रात्रि का अंधकार कम नहीं हो जाता
बांध को बाँधने पर भी
मचलती धरा का वेग कम नहीं हो जाता
पति के लाख तिरस्कार के बाद भी
पत्नी की साधना व् प्यार कम नहीं हो जाता
प्रियतम की घोर घृणा के बाद भी
प्रिया का प्रिय पर भरोसा कम नहीं हो जाता
डॉ स्वीट एंजिल