दुःख तो साथी है मेरा , लम्बी पहचान है,
उसे मानने का मन है , वो है तो मैं हूँ,
यही तो है मेरा यथार्थ , यही तो है अपना सा,
हर-पल मेरा साया, कभी छोड़ता ना पीछा ,
दुःख कहती हूँ , तो आँखों में एक रस होता है,
निर्झर बहते अश्रु, कहते हैं कि मैं हूँ !
घावों को कुरेदती हूँ , तन में पीड़ा होती है,
कराहते बदन , कहते है कि मैं हूँ !
पीड़ा होती है , तो अस्तित्व का भान होता है ,
एकाकी , मायूस मन, कहते है कि मैं हूँ !
इस दुःख के बिना , मैं हो ही नहीं सकती,
बिना मांगे , बिन बुलाये भागा चला आता है,
मेरे सबसे पास , सबसे करीब ,
अब तो दुःख में ही , रस आता है,
मेरे होने में ही , मेरा दुःख नियोजित है,
क्योंकि मेरा दुःख है , तो में हूँ!
डॉ. शालिनीअगम
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1 comment:
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