Friday, November 19, 2010

The Three Jewels of Buddhism- Buddham Sharanam Gacchami Hymn

NAMASTE INDIA.......................
THIS IS DR. SHALINIAGAM HAS BRING TO YOU & ALL MY FRIENDS
GOD's Love is Like CANDLE in The DARK.
No Matter How GLOOMY Our Life May Be,
Just One Little TOUCH Of HIS Love is ENOUGH To Bring WARMTH & LIGHT.
TRUST HIM

Thursday, November 18, 2010

Dr.Sweet Angel

मेरी एक कविता ................या .......................कह लीजिये मेरे जीवन-साथी को समर्पित कुछ शब्द ..............आभार ............या धन्यवाद ............कि  उन्होंने मुझे अपनी जीवन-संगिनी के रूप में  स्वीकार कर मुझे धन्य किया .................कृतज्ञता के ये कुछ शब्द रुपी पुष्प उन्हें समर्पित ...........................
सौंदर्य का सार
सौंदर्य.......................
...........
भला लगता है नेत्रों को,
सुखद लगता है स्पर्श से,
संपूर्ण विश्वा एक अथाह सागर, जिसमे भरा है सौंदर्य अपार,
हर चार -अचर हर प्राणी, सौन्दर्य को पूजता है बार-बार;
सौन्दर्य का भण्डार है देव -लोक,
सौंदर्य का कोष है पृथ्वी -लोक ,
प्रत्येक पूजित अपूजित व्यक्ति,
कल्पना करता है तो केवल,
सौंदर्य को पाने की;
परंतु....................................
एसे कितने मिलते है यहाँ ,
जो रूपता कुरूपता को,
समान पलडे पर तोलते है; जो चाहते है मानव -मात्र को,
मानते है दोनों को समान ,
शायद कुछ-एक-ही
कहीं ये एक समझोता तो नहीं?
नहीं;.................................
यह कठोर सत्य है,
वे वस्तुतः; प्रेमी है,
मन की सुन्दरता के;
शारीरिक सौंदर्य जिन्हें,
भटकाता नहीं है ,
वास्तविक जिंदगी से दूर............
उन्हें ले जाता नहीं है!
१९८९...........
www.aarogyamreikicom



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Friday, October 29, 2010

Dr.Sweet Angel

Tips on How to Make a Good and Lasting Relationship

1. Must listen to your partner and communicate all your feelings to one another but do not force your view point on to one another. Instead give reasons for the same.

2. Be tolerant and open minded. Avoid sarcasm and negativity and anything that can cause you a bad mood or her bad mood.

3. Learn to give and take - to give or take is not the answer, only a combination of the two in equal measure.

4. Create fondness for you in your in his / her parents. It is very important for both of you.

5 Give unconditionally. To expect always something in return is the same as paying for something.

6. Avoid being too emotional in your everyday life. You will have to convince your beloved that you are strong; that you are self-confident; that you know what to do; and that she/ he can rely on your emotional strength to be a help for him /her.

7. Kindness, understanding, trust and consideration are the keywords in relationships. If you are only trying to derive benefit from these relationships, forget about mutual understanding.

8. Be a friend first and then a lover. If you are the understanding friend of your beloved, she/he will be grateful and rewarding.

9. Give and demand respect to one another and do not let anyone treat you abusively.

10. If your relationships are established, you should carry on showing your beloved that you love and appreciate him/her.

11. Respect each others independence and keep in mind that your partner should never be treated as an object or possession.

12. Do not let other people push your buttons. Otherwise you will not be able to make any decision by yourself.

13. Learn to adjourn your recompense through patience, trust and understanding.

14 Agree to disagree and see each others view point.

15. Give space to one another but do not ignore one another.

16. Live like there is no tomorrow and cherish every moment you spend with your partner. You both should be like one heart and one soul.

Monday, September 27, 2010

tip of the day Dr.Sweet Angel

Sharing is caring thats what they say! Care for those around you by sharing your uplifting words today! Let them be life giving, positive, encouraging to every1!
अपना ख्याल रखना ,अपनों का ख्याल रखना ............दोनों ज़रूरी है दिलों प़र राज करने के लिए

Saturday, August 28, 2010

Dr.Sweet Angel (SHUBH AAROGYAM) मैं ही सर्व शक्तिमान हूँ


मैं ही सर्व शक्तिमान हूँ
अरे ! क्या हुआ निराश होकर क्यों बैठे हो ? क्या अपने ऊपर संदेह हो रहा है ? जब मानव सर्व -शक्तिमान है तो उसे संदेह क्यों होता है ॥ अपने ऊपर विश्वास न होना ही उसके अंदर की छिपी कमजोरी को बताता है ....

१- अपने अंदर सर्व-शक्तिमान होने का एहसास जगाइए और कठिन से कठिन कार्यों को भी संभव करने में जुट जाइये ।

२-जो लोग अपनी शक्ति को पहचान लेते हैं , उन्हें सफलता प्राप्त करने से कोई रोक नहीं सकता।

३-जीवन एक चुनौती है ,एक अभियान है ,जिसे जीकर -जाना जा सकता है लेकिन गणित के सवालों कि तरह हल नहीं किया जा सकता है बार-बार असफल होने के बावजूद अपने ऊपर विश्वास रखें ,अपनी योग्यता में कमी न आने दें

४- यदि हम अपनी कमियों को अपनी शक्ति बना लें तो अपने कार्य क्षेत्र में सफल होने से आपको कोई रोक नहीं सकता


Wednesday, June 30, 2010

Shubh Aarogyam)Dhyan kisaraltam vidhiyan -2



नमस्ते भारतवर्ष
ध्यान की सरलतम विधियाँ -२
अ-हर कार्य को धीमी गति से रस लेतें हुए करें । पूरे साक्षी भाव के साथ , पूरी समग्रता के साथ । इससे तनाव निर्मित नहीं होता और मन शांत बना रहता है । दिनभर के कार्यों को पूरी समग्रता के साथ करें जिस समय जो कार्य करें उसी का आनंद लें ।
बी- जब मौन में पूर्णतया निश्चल ,साक्षी भाव से केवल अपने मन को देखेंगे तो धीरे -धीरे विचारों का आवागमन भी थमने लगेगा और विचार लुप्त-प्राय: होने लगेंगे ।
सी - इस प्रकार हम चेतना के उच्चतम शिखर प़र पहुँचाने लगेंगे जंहा प़र केवल पवित्र ध्वनि गूँज रही होगी । हमारे अस्तित्व की ध्वनि, हमारे आकाश की ध्वनि ..............
डॉस्वीट  एंजिल
DIRECTER & FOUNDER SHUBH AAROGYAM
The spiritual Reiki healing & training center
DELHI

SHUBH AAROGYAM DHYAN KI SARALTAM VIDHIYAN -1


ध्यान की सरलतम विधियाँ -
नमस्ते भारतवर्ष
मेरे इस दूसरे ध्यान संस्करण में मैं आप सबको एक और सरल तकनीक बताने जा रहीं हूँ।
अपनी श्वांसों के आवागमन को केवल साक्षी भाव से देंखें ............साँसे आ रहीं हें ...............साँसे जा
रहीं हें। इस क्रिया को आनंद के साथ सिर्फ अनुभव करें। धीरे-धीरे साँसों की गति को धीमा करतें जाएँ।
मन इधर-उधार भटकता है ,भटकने दो,.............. इधर -उधार भागता है , भागने दो...........
जब साँसों की गति धीमी होने लगेगी ,तो मन का भटकना भी कम होता जाएगा ।
१ से १० तक की गिनती तक सांसों को भरें और फिर छोड़ें
अब आत्म-स्थिर होने का प्रयत्न करें। अकर्ता भाव से शरीर से अलग होकर ,शरीर में होने वाली हर क्रिया को बस अवलोकन करतें रहें.जैसे आप चित्र-पट प़र कोई चल-चित्र देख रहें हों.अब आप अलग है और शरीर अलग। शरीर में अनेको घटनाएँ घट रहीं हें,मन उछल -कूद कर रहा है। कहीं दर्द हो रहा है तो कहीं खुजली हो रही है,कहीं आराम आ रहा है कहीं बेचैनी है ,कहीं हल्का है तो कहीं भारी है ।
आप बस केवल उसे चुप-चाप महसूस करतें रहें, निहारतें रहें ................न कोई क्रिया - न प्रतिक्रिया ।
२४ घंटे बस साक्षी-भाव से अपने आपको साधतें रहें तो मन से भय,क्रोध,घृणा,चिंता,निराशा सभी कुछ निकलता चला जायेगा और फिर धीरे-धीरे आप पाएंगे कि आप ध्यान-पूर्ण होते जा रहें है ।
डॉ स्वीट एंजिल 
DIRECTER & FOUNDER SHUBH AAROGYAM
The spiritual Reiki healing & training center
e-4/30 Krishna Nagar
Delhi 110051

Wednesday, June 9, 2010

(mera ghar) kuch shabd mere apne Dr.Sweet Angel




mera ghar

मेरा घर,
सुबह की धूप में गुनगुनाता,
कड़कती ठण्ड में ठिठुरता मेरा घर,
सायं की लाली में सुर्माता
दोपहर की गर्मी में तपता मेरा घर!
रिमझिम फुहारों में भीगता
चाँद की चांदनी में चमचमाता मेरा घर,
ओस की बूंदों में नहाता,
इन्द्रधनुषी रंगों में रंगता मेरा घर!
सावन की बौछारों में मचलता
शीतल बयार में इतराता मेरा घर!
क्या जानू मैं स्वर्ग क्या है,
इन्द्र लोक का वैभव क्या है,
समस्त लोक का नैसर्गिक सुख,
देता लुटाता मेरा घर
.......................सदैव
......................डॉ।स्वीट एंजिल

Tuesday, June 8, 2010

shubh aarogyam Dr.Sweet Angel dhyan

नमस्ते भारतवर्ष
मेरे इस दूसरे ध्यान संस्करण में मैं आप सबको एक और सरल तकनीक बताने जा रहीं हूँ।
अपनी श्वांसों के आवागमन को केवल साक्षी भव से देंखें ............साँसे आ रहीं हें ...............साँसे जा
रहीं हें। इस क्रिया को आनंद के साथ सिर्फ अनुभव करें। धीरे-धीरे साँसों की गति कोधीमा करतें जाएँ।
मन इधर-उधार भटकता है ,भटकने दो,.............. इधर -उधार भागता है , भागने दो...........
जब साँसों की गति धीमी होने लगेगी ,तो मन का भटकना भी कम होता जाएगा ।
१ से १० तक की गिनती तक सांसों को भरें और फिर छोड़ें
अब आत्म-स्थिर होने का प्रयत्न करें। अकर्ता भाव से शरीर से अलग होकर ,शरीर में होने वाली हर क्रिया को बस अवलोकन करतें रहें.जैसे आप चित्र-पट प़र कोई चल-चित्र देख रहें हों.अब आप अलग है और शरीर अलग। शरीर में अनेको घटनाएँ घट रहीं हें,मन उछल -कूद कर रहा है। कहीं दर्द हो रहा है तो कहीं खुजली हो रही है,कहीं आराम आ रहा है कहीं बेचैनी है ,कहीं हल्का है तो कहीं भारी है ।
आप बस केवल उसे चुप-चाप महसूस करतें रहें, निहारतें रहें ................न कोई क्रिया - न प्रतिक्रिया ।
२४ घंटे बस साक्षी-भाव से अपने आपको साधतें रहें तो मन से भय,क्रोध,घृणा,चिंता,निराशा सभी कुछ निकलता चला जायेगा और फिर धीरे-धीरे आप पाएंगे कि आप ध्यान-पूर्ण होते जा रहें है ।




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Monday, June 7, 2010

Believe yourself dr. sweet angel

Don't limit yourself. Many people limit themselves to what they think they can do. You can go as far as you mind lets you. What you believe, you can achieve.

Tuesday, May 25, 2010

SHALINIAGAM (SURYE NAMASKAR)SHUBH AAROGYAM






नमस्ते भारतवर्ष सूर्य नमस्कार
सूर्य हमें जीवन देता है। सूर्य समय का दर्पण है। ये तो हम सब जानतें हैं कि हम सभी जीव-जंतु सूर्य की उर्जा ग्रहण करके ही जीवन प्राप्त करतें हैं. सूर्य ही इस धरती का प्राण है।सूर्य नमस्कार के माध्यम से हम अपने-आपको ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जोड़तें है।
अपने पहले के ब्लॉग में मैंने सूर्य द्वारा निरोगी होने कि विधि बताई थी। आज मैं आप सबको सूर्य नमस्कार की विधि बताने जा रहीं हूँ।
सूर्य - नमस्कार के लिए प्रात: काल सूर्य की ओर मुह करके यह क्रिया आरम्भ करें। इसमें १२ क्रियाएं अथवा आसन शामिल हैं । उपर दिये गए चित्र में सभी १२ आसन शामिल हैं। जो कायाकल्प की शक्ति रखतें है ,दीर्घायु प्रदान करतें है,यदि सूर्य-नमस्कार प्रतिदिन केवल १५ मिनट तक नियमित-रूप से किया जाए ,तो समूचे शरीर
को नई जीवन-शक्ति देता है,तथा उसे स्वस्थ और मजबूत बनता है।खाली पेट ,शांत मन से इसे करें।
लाभ-------- १- सूर्य -नमस्कार शरीर के आन्तरिक तथा बाहय अंगों को ऊर्जा देता है। छुपे हुए रोगों व् दर्दों की पहचान कराता है ।
२-इसके नियमित अभ्यास से कब्ज , मासिक धर्म की गड़बड़ियाँ तथा पाचन-सम्बन्धी साधारण शिकायतें दूर हो जातीं हैं.
३-यह शरीर के को जवानी प्रदान करता है, शक्ति देता है, नव-जीवन देता है।
४- मन को निर्मल,शांत व् पवित्र बनाता है
शालिनीअगम
www.aarogyamreiki.com
25 may 2010


Monday, May 17, 2010

dr.sweet angel (कुछ शब्द मेरे आपने) काम-ऊर्र्जा उपचार

नमस्ते भारतवर्ष,
काम -ऊर्जा से उपचार
काम-ऊर्जा को यदि हम क्षणिक काम-सुख पाने के लिए न करके ,रोग मुक्ति के लिए करें तो ? आश्चर्य -चकित न हों ध्यान से पढ़ें ..........
हमारा मन बहुत तीव्र गति से कार्य करता है ,अपनी बौद्धिक -शक्ति से हम मन को इच्छानुसार गति देने में सक्षम हैं

काम-सुख में निमग्न होते समय हम रोग-ग्रस्त भाग प़र ध्यान केन्द्रित करें.काम-ऊर्जा और रोग-ग्रस्त स्थल के बीच संपर्क स्थापित करें।
काम-सुख के चरम बिंदु प़र पहुँचने के क्षण ही हम काम-उर्जा को रोग-स्थल प़र पहुंचा दें । न-न कोई मुश्किल कार्य नहीं है बस थोडा सा मन को साधना है। जिस क्षण काम-ऊर्जा अपनी चरम-स्तिथि में आये तब उसी क्षण अपना ध्यान रोग-स्थल प़र केन्द्रित कर दें.एक पंथ दो काज । दोनों ही कार्य सफलता-पूर्वक हो जायेंगे.कोई तनाव नहीं लायें ना पहले ना बाद में केवल यह ठीक उसी पल संभव है जब चरम-बिंदु प़र पहुँचाने के लिए काम-ऊर्जा संचित होती है.

शिव और शक्ति के मिलन को रोग - निवारण का स्रोत भी बनाया जा सकता है।

Monday, May 10, 2010

tip of the day

Thinking positiv & living happily can revive your cells.

Monday, April 26, 2010

कुछ शब्द मेरे अपने (प्रिय कंहाँ हो )


किंचित ! अब प्रभात है,
मेरे जीवन का ,
कितने मन-मयूर ,कोकिला
आराध्य मेरे खोये रहें ,
प्रिय वक्ष प़र अनेकों बार
मन को समझातीं हूँ ,
किं
धर शीश ;
स्वप्न मेरे
मिलन अधरों का,
लहर उठे तन-मन में ,
मेरे सुर-सगीत निछावर
प्रिय के अनुराग में,
प्राण मन के मीत मेरे
स्वप्न के आधार.....
कंहा हो???????
मेरे अंगना
नाचने को आशान्वित हैं!
रचूँगी दिवास्वप्न ,
गढ़ूंगी आकृतियाँ
बावरा मन नित
नए स्वप्न बुनता है
मेरे मीत
निहारते मेरा रूप,
चंदा-चांदनी का खेल
हौले से मूंदें नेत्र
ढूढंती हर क्षण प्रिय ......
डॉ। शालिनीअगम
३१/०७/89

Sunday, April 25, 2010

कुछ शब्द मेरे अपने (पिता के लिए )

गुप्तजी ने लिखा था कि..........राम तुम इश्वर नहीं मानव हो क्या,प़र मैं कहती हूँ पिताश्री,राम! तुम मानव नहीं इश्वर हो क्या? सदैव सहज मुस्कान,निस्पृहता, मौन ,उदात्त ,निस्संगता से, अपने भीतर लबालब स्नेह से भरे, इस धरती प़र, संबंधों प़र,स्नेह- निर्झर से बहते ,मैं जानती हूँ ............आपका मौन अभिमान नहीं,मनन होता है , निरावेगी रूप के पीछे , प्रेम का आवेग होता है, सहज , सरल , व्यक्तित्व , बेहद निर्मल , विनयशील है,पिता! आप ही नम्र आत्मीय ,मर्मज्ञ प्रबुद्ध हैं ,दिखावटी संभ्रांत नहीं ,एकान्तिक भोले-भंडारी हैं , जो अपनी उपस्तिथि से , अपना परिवेश अनजाने में ही, सुवासित करते रहतें हैं, ..................................अगर दो में से एक भी संतान को,आपके कुछ गुण उधार लेकर (हकपूर्वक) उनमें डाल सकूं ,अगर जीवन-समर में , कहीं भीं कभी भी स्वम जीत कर आपका , मान रख सकूं , तो हे राम ! राम -सुता होने , का दायित्व निभा सकूं,................................
पिता के जन्म-दिन प़र, ५ सितम्बर
१९९५डॉ.शालिनीअगम
your lines as sweet as honey.your words are as pious as father's love.your phrases are as expressive as some poet's thinking.your poem as remarkable as orientation as Taaj-Mahal.Dr.sona
Aah! how much lovely words u have written
dr. Shalini u r amazing

Monday, April 19, 2010

Dr.Sweet Angel (SHUBH AAROGYAM)

अन्धविश्वास और विश्वास के बीच एक बहुत ही छोटा सा अंतर होता है,एक महीन सी रेखा होती है.हम विश्वास का पर्वत किसी निश्चित तथ्य के आधार प़र ही खड़ा करते हैं .हम सब ये तो अच्छी तरह से जानतें है कि इस परम सत्ता को चलाने वाली कोई शक्ति है, वही शक्ति है जो चमत्कार का भण्डार है,विश्वास से अद्भुत और असंभव कार्य सिद्ध हो जातें हैं .अन्धविश्वास का कोई ठोस आधार नहीं होता. किसी भ्रम या कल्पना को आधार बना कर वह अपनी जड़ें जमाता है .अनेक पण्डे, ओझा, तांत्रिक और एजेंट जैसे लोग उस भ्रम को हवा देते हैं . मेरे ही पडौस में एक पति ने अपनी पत्नी से छह : महीने तक केवल इसलिए रिश्ता नहीं रखा क्योंकि किसी पण्डे ने पति को उसकी तरक्की के लिए पत्नी से दूर रहने कि सलाह दी थी ....परिणाम तलाक कि नौबत आ गयी.इस प्रकार के चमत्कारी बाबाओं को अन्धविश्वासी लोगों कि खोज रहती है ,क्योंकि कम समय में अधिक लाभ का चमत्कार ये देखना चाहतें हैं अन्धविश्वास का सम्मोहन इन्हें आकर्षित करता है.सामान्य लोग मान्यताओं और परम्पराओं के सहारे जीतें हैं .वे हर बात को तर्क कि कसौटी प़र रख कर नहीं देखते.अन्धविश्वास फ़ैलाने वाले सामान्य जन के उस मनोविज्ञान को समझतें है .वे जानतें है कि कैसे कोई व्यक्ति किसी चीज के लिए स्वाभाविक रूप से तैयार किया जा सकता है उसे वे परम्पराओं और मान्यताओं क़ी दुहाई देकर समझातें है हम लोगों ने भौतिक प्रगति तो कर ली है ,शिक्षित और सभ्य भी कहलातें हैं प़र मानसिक स्तर प़र हम संकीर्ण और अंध-विश्वासी ही बने हुएँ हैं लेकिन हमें अंधे का भरोसा नहीं करना है.इश्वर तो हमारे भीतर ही है . जो सबकुछ जनता है,समझता है .सर्व-समर्थ है. उसको मानाने के लिए बाहर के गंडे-तावीज ,राख-भस्म क़ी ज़रुरत नहीं होती है.अत: सब कुछ छोड़कर अपने दुःख-कष्ट निवारण के लिए केवल अपनी ओर उन्मुख होना चाहिए .अपने भीतर ही वह इश्वर है जो चमत्कार का भण्डार है.इसलिए सर्व -शक्तिमान प़र विश्वास तो करो पर अन्धविश्वासी मत बनो.डॉ.शालिनीअगम२०१०
so trust yur self

MY POSITIVE THINKING IS MY BEST FRIEND

NEVER LET MYSELF BECOME DISCOURAGED.NEVER GIVE IN TO A NEGATIVE, AS EASY AS THAT MAY BE TO DO. REMIND MYSELF OF THE POWER I HAVE, THE POWER OF FAITH.
....................................SHALINIIAGAM
2010

कुछ शब्द मेरे अपने

मैं आभारी हूँ उस परमात्मा की ,मेरे जीवन का हर-पल एक उत्सव के समान है ।
सुबह आँखे खोलने से लेकर रात को सोने तक
मैं और मेरा परिवार हर-पल आनंद का अनुभव् करता है।
मेरी सभी इच्छाएं स्वतः ही पूरी हो जाती हैं ।
मैं खुश हूँ और खुशियाँ बाँटती हूँ
डॉ.शालिनीअगम
2O10

Sunday, April 18, 2010

कुछ शब्द मेरे अपने

आँखे दूर तलक ,
पीछा करतीं रहीं उनका ,
मौन मन साथ पाने को,
तरसता रहा .........
अपना सर्वस्व न्योछावर ,
करके भी .......
किंचित अपना ना
बना पाई उन्हें !!!
डॉ.शालिनीअगम
2010

Saturday, April 17, 2010

कुछ शब्द मेरे अपने प्यार की परिभाषा

प्यार की परिभाषा
प्यार की परिभाषा है क्या ,
कोई मुझे बताये ,
प्यार कहते हैं किसको
ये ज़रा समझाए .
प्रेम होता है जिससे .......
समीपता लगती है भली,
पिया संग रहें सदा
प्यास रहती है यही,
उनकी ज़रा सी बेरुखी,
सही जाती नहीं है,
उनका बेगानापन थोडा भी,
भेद जाता है मन को ,
उनके दूर होते ही ,
पल युगों में बदलतें हैं ,
घडी-घडी पलकें बिछाएं ,
नैन राह को तकतें हैं,
हर आहट पर धड़कता है दिल,
मन की गहराईयों में छिपी चाह,
सीमायें तोड़ देती हैं सभी,
प्यास बुझती है तभी आँखों की,
होती है प्रियतम से जब दो-चार/
डॉ.शालिनीअगम
१०८९ से अब तक
कुछ शब्द मेरे अपने

सौंदर्य का सार

सौंदर्य का सार
सौंदर्य ........................................
भला लगता है नेत्रों को,
सुखद लगता है स्पर्श से,
सम्पूर्ण विश्व एक अथाह सागर ,
जिसमें भरा है सौंदर्य अपार ,

हर चर-अचर हर प्राणी ,
सौंदर्य को पूजता है बारम्बार !
सौंदर्य का कोष है पृथ्वी-लोक ,
सौंदर्य का भण्डार है देव- लोक,
प्रत्येक पूजित-अपूजित व्यक्ति,
कल्पना करता है तो केवल ,
सौंदर्य को पाने की ,
परन्तु......................
ऐसे कितने मिलते हैं यंहा ,
जो रूपता-कुरूपता को,
समान पलड़े प़र तोलते हैं ,
जो चाहतें हैं मानव-मात्र को
मानते हैं दोनों को समान?
डॉ.शालिनीअगम
1989

Friday, April 16, 2010

Tip of the day

यह जो हमारी लाइफ है न ,हर बार दो रास्ते नज़र आयेंगे ....... हर पल मन में अनेक आवाजें सुनाई देंगीं .........उलझन का समय आएगा...........
ये काम करूँ या ना करूँ , इस रास्ते जाऊं या उस रास्ते जाऊं .इस उलझन और संशय कि स्तिथि में स्वयम की ही सोच काम करेगी.
भटकना छोड़ कर मनन करें , केवल अपने मन की बात प़र ध्यान दें .केवल अपने मन कि बात को जानने प़र ही सच्चाई को जान पाओगे.
उलझन से बचने का एक ही रास्ता है, केवल अपने मन कि बात सुनो ,self-centered होकर ही जीत पा सकते हो . अगर तुमने अपने अंदर
की आवाज को पहचान लिया है तो बाहर कुछ भी पाने की , ढूढने की आवश्यकता नहीं है ,
अपनी आँखे खुली रखो , तभी सच जान पाओगे, जब अपनी आँखें बंद रखोगे तो सच भी भीतर ही बंद हो जाएगा .
अपने अंदर की आवाज जो तुमने खुद ही मनन करके सुनी है,उसी में से ,तुम्हारे भीतर से एक नया ,चमकता हुआ ,आत्मनिर्भर,
केवल तुम्हारा ही विजय-गान सामने आएगा ,और देखो ........... जीवन मस्त और कितना खुशहाल बन रहा है
तुम्हारा जीवन निराशा के अँधेरे से निकल कर आशा के उजाले से भर रहा है.
so s

Thursday, April 15, 2010

कुछ शब्द मेरे अपने (स्व:)

कुछ शब्द मेरे अपने (स्व:)
कौशार्य की विस्मृत कोमलता लौट आने को है,
बचपन के उमंग , उल्लास ,स्वच्छंदता ,गीत-नाद ,
उत्सव------ सब कुछ लुप्त हुए थे कभी ,
प़र साजन के प्रेम में भीगी ,
चपल खंजन-सी ,फुदकती,चहकती ,
नवयुवती अलसाने को है!
डॉ.शालिनीअगम
2002

कुछ शब्द मेरे अपने (स्व:)

कुछ शब्द मेरे अपने (स्व:)
कौशार्य की विस्मृत कोमलता लौट आने को है,
बचपन के उमंग , उल्लास ,स्वच्च्छंद्ता,गीत-नाद ,
उत्सव------ सब कुछ लुप्त हुए थे कभी ,
प़र साजन के प्रेम में भीगी ,
चपल खंजन-सी ,फुदकती,चहकती ,
नवयुवती अलसाने को है!
डॉ.शालिनीअगम
2002

कुछ शब्द मेरे अपने

दुःख तो साथी है मेरा , लम्बी पहचान है,
उसे मानने का मन है , वो है तो मैं हूँ,
यही तो है मेरा यथार्थ , यही तो है अपना सा,
हर-पल मेरा साया, कभी छोड़ता ना पीछा ,
दुःख कहती हूँ , तो आँखों में एक रस होता है,
निर्झर बहते अश्रु, कहते हैं कि मैं हूँ !
घावों को कुरेदती हूँ , तन में पीड़ा होती है,
कराहते बदन , कहते है कि मैं हूँ !
पीड़ा होती है , तो अस्तित्व का भान होता है ,
एकाकी , मायूस मन, कहते है कि मैं हूँ !
इस दुःख के बिना , मैं हो ही नहीं सकती,
बिना मांगे , बिन बुलाये भागा चला आता है,

मेरे सबसे पास , सबसे करीब ,
अब तो दुःख में ही , रस आता है,
मेरे होने में ही , मेरा दुःख नियोजित है,
क्योंकि मेरा दुःख है , तो में हूँ!
डॉ. शालिनीअगम
www,aarogyamreiki.com

!

कुछ शब्द मेरे अपने

दुःख तो साथी है मेरा , लम्बी पहचान है,
उसे मानने का मन है , वो है तो मैं हूँ,
यही तो है मेरा यथार्थ , यही तो है अपना सा,
हर-पल मेरा साया, कभी छोड़ता ना पीछा ,
दुःख कहती हूँ , तो आँखों में एक रस होता है,
निर्झर बहते अश्रु, कहते हैं कि मैं हूँ !
घावों को कुरेदती हूँ , तन में पीड़ा होती है,
कराहते बदन , कहते है कि मैं हूँ !
पीड़ा होती है , तो अस्तित्व का भान होता है ,
एकाकी , मायूस मन, कहते है कि मैं हूँ !
इस दुःख के बिना , मैं हो ही नहीं सकती,
बिना मांगे , बिन बुलाये भागा चला आता है,

मेरे सबसे पास , सबसे करीब ,
अब तो दुःख में ही , रस आता है,
मेरे होने में ही , मेरा दुःख नियोजित है,
क्योंकि मेरा दुःख है , तो में हूँ!
डॉ. शालिनीअगम
www,aarogyamreiki.com

Wednesday, April 14, 2010

कुछ शब्द मेरे अपने

ना मायूस होने प़र सांत्वना दी ,
ना उदास होने प़र कभी गले से लगाया ,
ना कभी मेरी तरक्की में शाबाशी दी,
ना कभी मेरे रोने प़र आंसू पोंछे,
ना हंसना चाहा तो हंसने दिया,
ना कोई गीत कभी गुनगनाने दिया,
जब भी कभी अकेले जीने कि हिम्मत जुटाई,
तो अंदर कि आत्मा को भी कुचल कर......
साथ छोड़ने प़र मजबूर कर दिया,
ऐसा ही था
मेरा और उसका रिश्ता
ना प्रेम का ना दर्द का!
डॉ.शालिनिअगम
www.aarogyamreiki.com

कुछ शब्द मेरे अपने.

तो क्या छोड़ दूं ?
अपनी सीमाओं को,
क्षुद्रताओं कों???????????
और वरण कर लूं असीम को,
क्या ये सारा आकाश मेरा है,?
और पृथ्वी के सारे सुख मेरे हैं?
क्या उठूं और आलिंगन कर लूं
जीवन का ??????????
डॉ. शालिनिअगम

कुछ शब्द मेरे अपने.

काश! उत्सव आ जाए ,
दीये ही दीये जल जाएँ ,
फूल ही फूल खिल जाएँ,
जो मैने जाना, मैंने जिया ,
मैंने पहचाना .........
कुछ न मिला...................
काश!
भीतर मेरी आत्मा का स्नान हो जाये ,
भीतर में स्वच्छ हो जाऊं ,
भीतर में आनंदमग्न हो जाऊं........
डॉ.शालिनिअगम
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kuch shabd mere apne

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कुछ देर सिमट कर जी लूं मैं,
तुम्हारे मखमली आगोश में,
कुछ देर मचल कर अंगड़ाई लूं मैं,
महकती गर्म साँसों के घेरे में,
सहमी तर तराई इस ख़ुशी को ,
समेट लो अपने बाजुओं में ,
टिकी रहे देर तक मुझ प़र,
भुला दे,जो मुझसे मुझको,
मादकता में बहके हम दोनों,
खों जाएँ एक-दूसरे में.....................
डॉ.शालिनीअगम
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Tuesday, April 13, 2010

Tip of the day

Always welcome a new day with a
'Smile' on your lips,
'Love' in your heart ,
'Good thoughts' in your mind,
And you will have a
Wonderful day Ahead...!!!

dr.shaliniagam
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kuchshabdmereapne: Tip of the day

kuchshabdmereapne: Tip of the day

Monday, April 12, 2010

abhilaasha

हे : प्रभु! बना दो मुझे एसा तरु ,
निर्लिप्त भाव से सबकी सेवा मैं करू,
फल- फूलों से हों आचार- विचार,
चंव,तने,जड़ सब जैसे संस्कार,
झुकी रहूँ सदैव तरु कि डालियों सी,
तृषा मिटाऊँ जग कि जठराग्नि की,
हर टूटे-थके मन को दूँ आराम,
व्यर्थ है जीवन न आये गर किसी काम,
मेरी शीतल छाया ले मेरा परिवार,
झर-झराऊँ पुष्पों को उन पार बारम्बार!
डॉ.शालिनीअगम,
1997